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सोमवार, 23 अगस्त 2010

आजादी

१९४७ से २०१० कुल मिला कर हो गए ६३ साल हमे आजाद हुए। ६३ साल एक सफ़र की तरह शायद गुज़र गया भारत के इतिहास में। इतिहास के पन्नो पर इन ६३ सालों का विवरण लिख दिया गया होगा ठीक उसी तरह जिस तरह गुलाम भारत का विवरण आज हमे मिल जाता है अनदेखा अनजाना विवरण। जिसे हम एक कहानी समझ कर शायद पढ़ लेते है। एक कहानी जो हमे शायद ख़ुशी देती है। एक कहानी जो हमारा मनोरंजन करती है। एक कहानी जो इतिहास का विषय है और विद्यालयों में पढ़ा और पढाया जाने वाला पाठ भी। जिसे छात्र पढ़ते हैं इसलिए की परीक्षा में उस पाठ में से कोई प्रश्न आ सकता है और उसका उत्तर लिखना है वर्ना नंबर कट जायेंगे और फेल होने का डर सताता है। न जाने कितनी ही फिल्मों का निर्माण हो चूका है इस इतिहास पर। हम बड़े शौक से जाते हैं इन फिल्मो को दखने के लिए। अन्दर का तो पता नहीं मगर सिनेमा हॉल से बाहर निकल कर हम सब भूल जाते है, हम ये भी भूल जाते है की फिल्म में दिखा गया इतिहास किसका था, हम तो सिर्फ और सिर्फ हीरो और हिरोइन की बातें करते नज़र आते है और फिर किसी नयी फिल्म का इंतज़ार करने लगते है। कितना अजीब सा है हमारा यह भारतीय परिवार। बिलकुल निश्चिंत निश्फिकिर, अपने आप में ब्यस्त, सब कुछ जान कर भी अनजाना, सब कुछ देख कर भी अनदेखा सा।
६३ साल ! क्या पाया हमने इन ६३ सालों में? क्या खोया हमने इन ६३ सालों में? क्या सचमुच हम आजाद हो गए हैं सही मायनो में? आजादी का मतलब क्या है? क्या सीखा है हमने इन ६३ सालों में? क्या हम सचमुच इन प्रश्नों का उत्तर दे सकते है? शायद नहीं?
६३ साल! हम आज तक अपनी पहचान भी ठीक तरह से नहीं बना पाए है विश्व पटल पर। क्या है हमारी पहचान? कौन है हम? एक इंडियन या भारतीय या फिर हिन्दुस्तानी ?
६३ साल! हम आज तक अपनी भाषा भी नहीं सिख पाए ठीक तरह से। क्या है हमारी भाषा? अंग्रेजी या हिंदी या फिर वो जो भारत के अलग अलग छेत्र में बोली जाती है अलग अलग भाषा।
६३ साल! हम आज तक विभाजित है धरम के नाम पर।
६३ साल! हम आज तक विभाजित है कर्म के नाम पर।
६३ साल! हम आज भी मजबूर है व्यवस्था के नाम पर।
६३ साल! हम आज भी पिस रहे है सत्ता के नाम पर।
६३ साल! रोज़ किसी न किसी तरह हम इन प्रश्नों को झेलते आ रहे है। कभी अख़बार के पन्नो पर। कभी रेडियो पर या फिर टीवी पर। कभी किसी सेमिनार में श्रोता बन कर। कभी अपने लोगो के बीच बैठ कर। कभी शायद अपने आप से ही बातें कर के।
मगर हम निश्चिंत है कोई न कोई तो उत्तर खोज ही लेगा इन प्रश्नों का और फिर ये हमारा काम नहीं है। ये तो उपरवालों का काम है जो हमसे ऊपर बैठे हैं। जो इस देश को चलाते हैं। हम सिर्फ एक आम आदमी हैं।
आम आदमी ! एक आम आदमी बिलकुल आम होता है। जिसे जो चाहे जब चाहे चूस कर फेक देता है। किसी गटर में या फिर किसी कुरेदान में। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जिसे फुरसत नहीं, रोज़मर्रा की भागदोर से जिसे फुरसत नहीं, जो सिर्फ अपने आप में ही व्यस्त है, सुबह से शाम तक ज़िन्दगी की चक्की में रोज़ जो पिसता रहता है, अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश करता हुआ, थका हरा, परेशान सा घर लौटता हुआ, जिसकी ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं, सब कुछ उस उपरवाले की दया पर, उम्मीद पर टिका, आशा करता हुआ जनम लेता है एक दिन मर जाता है। ऐसा होता है एक आम आदमी।
एक आम आदमी का देश, हमारा देश, हम सब का देश। मगर ये देश आज तक आम आदमी का नहीं हो सका और ना ही आम आदमी इस देश का। कितना बड़ा दुर्भाग्य है हम सब का की हम इस देश के हैं मगर हम इस देश के नहीं हो सके। हम सोचते बहुत हैं मगर करते कुछ भी नहीं। हमारी सोच सिर्फ हम तक ही रह जाती है। हम सुनते बहुत हैं मगर सुनाते नहीं। हमारे बोल हमारे अंदर ही दब कर रह जाते हैं, यहाँ तक की हमारे अपने कान भी उन बोलों को सुन नहीं पाते हैं। हमे अधिकार दिया गया है मगर उसे क्षिन भी लिया गया है। हमे आँखे तो दी गयी मगर रौशनी क्षिन ली गयी। सुबह आई मगर उजाला नहीं लायी। बाग़ तो है मगर बहार का पता नहीं। ज़िन्दगी है मगर जीवन का ठिकाना नहीं। लोग तो है मगर लोगों का पता नहीं। सब कुछ बस उस पर निर्भर। उसने दिया तो ठीक नहीं दिया तो ठीक। संतोष ही जीवन है और संतोषी हमारा मन। हम सब कुछ सह लेते हैं। कितना भी बुरा हो हम उसे नियति मान लेते है। ये सहना शायद हमारी आदत हो गयी है। अभी तक सिर्फ हम सहते ही आये है और सह रहे हैं और एक दिन सहते सहते चले जायेंगे। गुलामी की आदत सी हो गयी हमे। २००० साल या फिर उससे भी जयादा हम गुलाम थे। और आज भी हम गुलाम हैं। उस समय विदेशियों के गुलाम थे और आज हम अपने आप के। किसको दोष दें, उन विदेशियों को या फिर अपनों को। वो तो चले गए मगर ये अपने कहाँ जायेंगे? उनसे तो हम लड़ लिए मगर इनसे कैसे लड़े? उनसे लड़ने के लिए हमारे पास हथियार थे, अहिंसा, एकता, भाईचारा, सध्भाव्ना, सत्य और संकल्प। इनसे लड़ने के लिए तो हमारे पास हथियार भी नहीं है। क्योंकि इन्होने हमे पंगु बना दिया है। हमारे हाथ कट दिए हैं। हमारी शक्ति को क्षिन लिया है। जिस हाथ पाँव और शक्ति के बल पर हम लड़े थे वो ही आज हमारी रुकावट बन गए हैं। हम लड़े भी तो कैसे लड़े और हम किसके विरुद्ध लड़े अपनों के ही ?
हम सबका भारत हमारा अपना भारत सपनो का भारत एकता और भाईचारा का भारत।
आजादी को सलाम भारत को सलाम भारत के भारतवासियों को सलाम।

3 टिप्‍पणियां:

  1. अभी उम्मीदें बाकी हैं।

    ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है।

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  2. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई
    ब्लाग जगत में आपका स्वागत है
    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  3. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए आपका आभार. आपका ब्लॉग दिनोदिन उन्नति की ओर अग्रसर हो, आपकी लेखन विधा प्रशंसनीय है. आप हमारे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "अनुसरण कर्ता" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
    माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग

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